Wednesday, December 15, 2021

मोहोब्बत, नफ़रत

जब तेरे पास मेरे लिए सिर्फ़ नफ़रत होगी .....
मैं तेरे लिए मोहोब्बत ले आऊंगा ।

तुम चले जाना नज़रें फेर कर मुझसे....
मैं तुझे देखने बार बार आऊंगा ।

मुझे गुनेहगार समझोगी कब तक .....
अदालत - ए - नफ़रत में  मोहोब्बत - ए - मुज़रीम सा चला आऊंगा ।

मुद्दा - ए - शराब  पर होगी तेरे लिए बहस जब कभी....
मैं  पुराना आशिक़ तेरा , फिर भी सबसे पीछे खड़ा खुद को पाऊंगा ।


❤❤

बिछड़ने के बाद मत डुंडना मुझे...
मैं ना नुक्कड़ , ना उस दरवाजे के पीछे , ना उस शराब खाने पर....
मैं तेरे अंदर या जन्नत में मिलूंगा तुझे । ।


Saturday, April 3, 2021

लड़कियाँ

 लड़कियाँ,

बेशक एक ख्वाहिश है कुछ लोगों की
कुछ की सोच,
कुछ की रंजिश,
कुछ की इज्जत,
कुछ के लिये खिलौना।

पर लड़कियाँ हैं क्या ?

वो जब भी सजती हैं,
किसके लिये सजती हैं,
खुद के लिये या उसके लिये-
जिसे हम उससे पुछे बिना उससे जोड़ चुके हैं।

एक छोटी सी पायल
एक छोटा-सा झूमका,
बेशक वो सुन्दर है,
रंग उसका,बनावट उसके शरीर की,
उसे कभी मायुश नही करती,
उसकी चन्नी वो सम्भाल सकती है,
बिन्दी लाल हो काली,प्यारे लगती है।

जब वो अकेली बस के लिये चलती है
हजारों-हजार उसके साथ चलती है,
हमे अकेली लगती हैं।

ये समाज,
ये दुनिया ,
ये लोग,
ये रीति-रिवाज़,
उसे अलग बनाते हैं हम सबसे,
हमारे बीच होने के बावजूद भी !

उसकी खनकती पायल को किसी की पहचान बताया है,
उसकी बिन्दीया का कारण खुद बना,
लाखों को बताया जाता है।
उसने कपड़े पहने तो,
बेशक लिहाज़ एक मर्द द्वारा बताया जाता है।
उनकी महफिलों को गलत बताया जाता है,
उनसे बिना पुछे उन्हे छूआ जाता है,
उसके बिना कहे उसे सिखाया जाता है,
तुम्हें प्यार है उससे तो प्यार दिखाओ,
यूं खाली अपनापन ना जताऔ
यूं उसका मजाक ना बनाओ,
वो तुम्हारे साथ एक विश्वास से है,
उसकी काली आंखों में लगा वो फीका-सा काजल ना बहाओ।

हम भी सफर करते हैं रातों में,
डर नही लगता,
उन्हें क्यूं डरना पड़ता है,
उन्हें ही क्यूं बदलना पड़ता है,
कभी निकलना तुम अंधेरे में,डर लगेगा।

खुद के लिये लड़ती हैं,
अपनो के लिये पड़ती हैं,
वो,जिन्हें वो जानती भी नही,
उस खौखले समाज का ध्यान करना पड़ता है
उन्हें ही क्यूं सब कुछ करना पड़ता है,
वो बहन है तेरी,
या दोस्त है,
होगी रिश्तेदार की बेटी
हाँ उसे भी डरना पड़ता है।

वो अकेली निकलती है,
अपने आप के लिये!
कभी हार नही मानती,
हर बार लड़ती हैं,
सब के लिये।
हर दिन थोड़ी सी मरती है।
उसे सब के बारे में पता है,
फिर भी अनजान बनती है,
एक मौका देती है,
तेरे लिये सब कुछ करती है,
माँ,बहन,बेटी,बीवी,दोस्त,
फिर भी तू उसको नही समझता,
ओ इन्सान तू इन्सान को नही समझता।

देख वोही इश्क़ की अचूक राधा है
वो ही शिव को झुकाने वाली काली,
उसे मजबुर ना कर,
पेन गिरा के लड़ने के लिये,
वो ही रानी बाई ,
वो ही ज्योतिबा है,
ओ आदमी समझ ले उसे,
वो तेरी कलम,
वो तेरा कागज़,
वो तेरे नवरात्रे ,
वो तेरी नमाज,
तेरे संगीत में वो,
तेरे शब्दों में है,
फिर भी क्यूं कदमों में है,
वो तुझे समझती है
बेशक वो 'लड़की' है।

मैने 'इश्क़' किया,उसने 'इश्क़' किया,
उसने उससे किया,मैने उससे किया,
तेरी गुजारिशोँ से वो ना कभी थक्ती है,
अन्ततः बेशक़ वो 'लड़की' है।

Thursday, March 25, 2021

अधूरी ख्वाहिश

एक नज़र ने देखा उसको ,
दूसरी शर्मा रही थी ।
होंठ चुप थे जुबां गा रही थी ,
दुरी हमारे बीच कम थी बेशक़ ,
पर थी , दीवारें बता रही थी ।
झलक को उसकी बहाने बनाते,
मिरी हर हरकत ये समझा रही थी ,
जरा-सी टेर भी उसको पुकार रही थी,
सुखे से लब उसके, उलझे से केश थे,
मैं अन-बन था मुझे संवार रही थी।
वो पड़ने-लिखने में मशगूल,पल्ला सम्भाल रही थी,
शशी भी छिपा था,पाथ सिमटा हुआ-सा ,
वो बार-बार बाहर आ रही थी ,
मैं भी भला लिखने में लीन था ,
वो लिखवा रही थी ।
एक शहज-सी डग थी उसकी,
तामीर थी फूलों जैसी,
पंखड़ी-सी वो सुन्दर थी,
नज़र नीचे तीखी-सी,धीरे-धीरे चुभा रही थी,
खवाहिश थी बहूत गप-शप की,
के जरा हाथ बड़ाऊं,थोड़ी बात कर आऊं,
मैने रोका खुद को हर मरतबा,
वो लड़की ज्यादा बेगानी थी,
वो गूजरी इस कदर के छुट गयी,
बाल सुलझे थे उसके,आंखेँ सीधी थी,
लब गीले थे चाल बे-डंग सी थी,
किताबें ना थी हाथ में,
पहन के रिश्ता वो सिमटि-सी थी,
वो अन्जानी-सी मैंने आज जानी थी,
मिरी भी,उसकी भी,
वो खुद एक अधूरी कहानी थी,
हम तो उसके नही थे....
उसके लिये,
पर वो कल भी हमारी थी,वो आज भी हमारी थी ।
💔

Tuesday, March 2, 2021

उलझा रहता हूँ

 इस बहते शहर में ,

सिगरेट जलाना ,
उसकी याद आना ,
उसको अपना बनाना ,
बुझाना और पन्नों पर उतारना ,
बस उलझा रहता हूँ मैं ।

उसे भुलाना ,
इंतज़ार में बैठना ,
सर कंधे पर रखना ,
सो जाना , खो जाना ,
यादों में रहता हूँ मैं ,
बस उलझा सा सहता हूँ मैं।

वो गल्तियां , वो शर्मिंदगी ,
वो मांफीया , वो जिन्दगी ,
वो बातें , वो रातें ,
वो यादें ,
तेरा याद आना और खो जाना ,
देख रोता रहता हूँ मैं ,
बस उलझा सा सहता हूँ मैं ।

कभी बताना ,
तेरा यूं जाना ,
सिख छिपाना ,
तेरा आँशु आना ,
मैं लिखने का शौकीन हूँ ,
कभी आना कभी बताना ,
देख बैठ लिखता हूँ मैं ,
बस उलझा सा रहता हूँ मैं ।

मेरा ऐसा होना ,
तुझे न पाकर... भी खोना ,
वजह लिखना , बेवजह रोना ,
मन से कमजोर होना ,
एक अन्धेरे का खाली सा कोना ,
धुएँ में सांस लेना ,
दौड़ता सा रहता हूँ मैं ,
बस उलझा सा सहता हूँ मैं ।

Thursday, February 25, 2021

चिड़िया


वो नन्ही सी इस मुल्क की ही है
गद्दार मानी जा रही है,
तिनका तिनका पिरोया था घोसला बनाने में
आज उसी से उसकी पहचान मांगी जा रही है।
थक चुकी है वो
देख परेशान है
दौड़ने में न-काबिल
न-लड़ने की हिम्मत!
उसकी शहंशीलता आजमाई जा रही है
देख उससे उसकी पहचान मांगी जा रही है।
जब,तब जा चुके थे सब
उस तुफान के डर से
वो खड़ी थी तब
अकेली लड़ी थी तब
उसकी शक्ती आजमाई जा रही है!
देख उससे उसकी पहचान मांगी जा रही है।
जीत हुई तब
आ गए सब,कोई भेदभाव ना था
उम्र,जात,धर्म,लिन्ग,
सबका एक साथ सा था
उसकी एक-जुटता आजमाई जा रही है!
देख उससे उसकी पहचान मांगी जा रही है।
इर्ष्या करने वालो ने,अपने घर भरने थे
अपनी जीत की खातिर दो भाई अलग करने थे,
शुरु हुई जंग,
बे-डंग,
उनके पर काटे,
जिनका था अलग रंग-ओ-डंग,
उनको पहले दबाया गया,
बाहर आते ही गद्दार बनाया गया,
फिर शुरु हो गया खेल धर्म का
अपनी बचाकर उसकी ध्र्मात्मा मारी जा रही है!
देखो जरा ए-बाजो !!
चिरैया से चिरैया मारी जा रही है,
मुल्क से मुल्क की ही पहचान मांगी जा रही है।

विकास



 वक़्त गुजरता है तेरी उम्मीदों के झरोखे पे

इंतज़ार है आओगे तुम एक दिन चौके पे।

जब जरुरत होगी तुम्हारी तुम्हे पा लेंगे हम,
अपने दिल मे कहीं छिपा लेंगे हम,
मेरे लिखे हर लफ्ज़ में तेरा नाम गुन्जता है
ये दुनिया जलती है
कहती है जला दो इन ल्फ्ज़ो को,
कोई बताए इन्हे तुम्हे साथ रखने के लिये ये दुनिया जला देंगे हम।

Friday, February 12, 2021

मजबुरी

जीना एक मजबुरी बन गया है,
छोटी उमर में आँशु पीना,
जीना बन गया है।
सारे रिश्ते नाते स्वार्थ के,
सारे अपने केवल इर्ष्या में,
रोना भी छिपके अब 
हसना भी छिपके अब,
जीने के लिये जीना जीवन बन गया है!


खाली सी रातें हैं!
कुछ लिखी पड़ी किताबें हैं,
उन्ही को पढ़ कर वक़्त बितातें हैं!
पढ़ना अब मजबुरी बन गया है,
जीने के लिये जीना अब जीवन बन गया है।

ब्तियाना बिना बर्ताव के,
इश्क़ दिखाना बिना लगाव के,
जश्न बनाना बिना चाव के!
इश्क़ अब मजबुरी बन गया है!
जीने के लिये जीना अब जीवन अब गया है।

सन्नाटा है कच्रों में!,
सुनसान है,
दिखावा है सडकों पे,
शिन्गार अब मजबुरी बन गया है,
जीने के लिये जीना अब जीवन बन गया है।

रिक़्त है मन बिना ज्ञान के,
भरे हैं स्थल बिना भगवान के,
अंध-विस्वास अब मजबुरी बन गया है!
जीने के लिये जीना अब जीवन बन गया है।

नष्ट हुआ अस्तितव,
प्यार का अब,
उसके झूठे प्यार से!
भगवान का अब,
तुम्हारे झूठे परचार से!
धर्म का अब,
धोकेदार से!
कर्म का अब,
छोटी मार से!
दहशत का अब,
दो हथियार से!
सबके लिये जीना अब मजबुरी बन गया है,
इश्क़ के लिये जीना अब जीवन नहीं रहा!
अपनो का अपनो को मारकर अपने लिये ही जीना अब जीवन बन गया है।


🙏





मोहोब्बत, नफ़रत

जब तेरे पास मेरे लिए सिर्फ़ नफ़रत होगी ..... मैं तेरे लिए मोहोब्बत ले आऊंगा । तुम चले जाना नज़रें फेर कर मुझसे.... मैं तुझे देखने बार बार आऊ...