Started writing from 11th grade.At that time it was strange to think about all these things. But now i feel very Good and Different.That's why i write whatever i think or understand.
Thursday, February 25, 2021
चिड़िया
वो नन्ही सी इस मुल्क की ही है
गद्दार मानी जा रही है,
तिनका तिनका पिरोया था घोसला बनाने में
आज उसी से उसकी पहचान मांगी जा रही है।
थक चुकी है वो
देख परेशान है
दौड़ने में न-काबिल
न-लड़ने की हिम्मत!
उसकी शहंशीलता आजमाई जा रही है
देख उससे उसकी पहचान मांगी जा रही है।
जब,तब जा चुके थे सब
उस तुफान के डर से
वो खड़ी थी तब
अकेली लड़ी थी तब
उसकी शक्ती आजमाई जा रही है!
देख उससे उसकी पहचान मांगी जा रही है।
जीत हुई तब
आ गए सब,कोई भेदभाव ना था
उम्र,जात,धर्म,लिन्ग,
सबका एक साथ सा था
उसकी एक-जुटता आजमाई जा रही है!
देख उससे उसकी पहचान मांगी जा रही है।
इर्ष्या करने वालो ने,अपने घर भरने थे
अपनी जीत की खातिर दो भाई अलग करने थे,
शुरु हुई जंग,
बे-डंग,
उनके पर काटे,
जिनका था अलग रंग-ओ-डंग,
उनको पहले दबाया गया,
बाहर आते ही गद्दार बनाया गया,
फिर शुरु हो गया खेल धर्म का
अपनी बचाकर उसकी ध्र्मात्मा मारी जा रही है!
देखो जरा ए-बाजो !!
चिरैया से चिरैया मारी जा रही है,
मुल्क से मुल्क की ही पहचान मांगी जा रही है।
विकास
वक़्त गुजरता है तेरी उम्मीदों के झरोखे पे इंतज़ार है आओगे तुम एक दिन चौके पे।
जब जरुरत होगी तुम्हारी तुम्हे पा लेंगे हम,
अपने दिल मे कहीं छिपा लेंगे हम,
मेरे लिखे हर लफ्ज़ में तेरा नाम गुन्जता है
ये दुनिया जलती है
कहती है जला दो इन ल्फ्ज़ो को,
कोई बताए इन्हे तुम्हे साथ रखने के लिये ये दुनिया जला देंगे हम।
अपने दिल मे कहीं छिपा लेंगे हम,
मेरे लिखे हर लफ्ज़ में तेरा नाम गुन्जता है
ये दुनिया जलती है
कहती है जला दो इन ल्फ्ज़ो को,
कोई बताए इन्हे तुम्हे साथ रखने के लिये ये दुनिया जला देंगे हम।
Friday, February 12, 2021
मजबुरी
जीना एक मजबुरी बन गया है,
छोटी उमर में आँशु पीना,
जीना बन गया है।
सारे रिश्ते नाते स्वार्थ के,
सारे अपने केवल इर्ष्या में,
रोना भी छिपके अब
हसना भी छिपके अब,
जीने के लिये जीना जीवन बन गया है!
खाली सी रातें हैं!
कुछ लिखी पड़ी किताबें हैं,
उन्ही को पढ़ कर वक़्त बितातें हैं!
पढ़ना अब मजबुरी बन गया है,
जीने के लिये जीना अब जीवन बन गया है।
ब्तियाना बिना बर्ताव के,
इश्क़ दिखाना बिना लगाव के,
जश्न बनाना बिना चाव के!
इश्क़ अब मजबुरी बन गया है!
जीने के लिये जीना अब जीवन अब गया है।
सन्नाटा है कच्रों में!,
सुनसान है,
दिखावा है सडकों पे,
शिन्गार अब मजबुरी बन गया है,
जीने के लिये जीना अब जीवन बन गया है।
रिक़्त है मन बिना ज्ञान के,
भरे हैं स्थल बिना भगवान के,
अंध-विस्वास अब मजबुरी बन गया है!
जीने के लिये जीना अब जीवन बन गया है।
नष्ट हुआ अस्तितव,
प्यार का अब,
उसके झूठे प्यार से!
भगवान का अब,
तुम्हारे झूठे परचार से!
धर्म का अब,
धोकेदार से!
कर्म का अब,
छोटी मार से!
दहशत का अब,
दो हथियार से!
सबके लिये जीना अब मजबुरी बन गया है,
इश्क़ के लिये जीना अब जीवन नहीं रहा!
अपनो का अपनो को मारकर अपने लिये ही जीना अब जीवन बन गया है।
🙏
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