Thursday, March 25, 2021

अधूरी ख्वाहिश

एक नज़र ने देखा उसको ,
दूसरी शर्मा रही थी ।
होंठ चुप थे जुबां गा रही थी ,
दुरी हमारे बीच कम थी बेशक़ ,
पर थी , दीवारें बता रही थी ।
झलक को उसकी बहाने बनाते,
मिरी हर हरकत ये समझा रही थी ,
जरा-सी टेर भी उसको पुकार रही थी,
सुखे से लब उसके, उलझे से केश थे,
मैं अन-बन था मुझे संवार रही थी।
वो पड़ने-लिखने में मशगूल,पल्ला सम्भाल रही थी,
शशी भी छिपा था,पाथ सिमटा हुआ-सा ,
वो बार-बार बाहर आ रही थी ,
मैं भी भला लिखने में लीन था ,
वो लिखवा रही थी ।
एक शहज-सी डग थी उसकी,
तामीर थी फूलों जैसी,
पंखड़ी-सी वो सुन्दर थी,
नज़र नीचे तीखी-सी,धीरे-धीरे चुभा रही थी,
खवाहिश थी बहूत गप-शप की,
के जरा हाथ बड़ाऊं,थोड़ी बात कर आऊं,
मैने रोका खुद को हर मरतबा,
वो लड़की ज्यादा बेगानी थी,
वो गूजरी इस कदर के छुट गयी,
बाल सुलझे थे उसके,आंखेँ सीधी थी,
लब गीले थे चाल बे-डंग सी थी,
किताबें ना थी हाथ में,
पहन के रिश्ता वो सिमटि-सी थी,
वो अन्जानी-सी मैंने आज जानी थी,
मिरी भी,उसकी भी,
वो खुद एक अधूरी कहानी थी,
हम तो उसके नही थे....
उसके लिये,
पर वो कल भी हमारी थी,वो आज भी हमारी थी ।
💔

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