लड़कियाँ,
बेशक एक ख्वाहिश है कुछ लोगों कीकुछ की सोच,
कुछ की रंजिश,
कुछ की इज्जत,
कुछ के लिये खिलौना।
पर लड़कियाँ हैं क्या ?
वो जब भी सजती हैं,
किसके लिये सजती हैं,
खुद के लिये या उसके लिये-
जिसे हम उससे पुछे बिना उससे जोड़ चुके हैं।
एक छोटी सी पायल
एक छोटा-सा झूमका,
बेशक वो सुन्दर है,
रंग उसका,बनावट उसके शरीर की,
उसे कभी मायुश नही करती,
उसकी चन्नी वो सम्भाल सकती है,
बिन्दी लाल हो काली,प्यारे लगती है।
जब वो अकेली बस के लिये चलती है
हजारों-हजार उसके साथ चलती है,
हमे अकेली लगती हैं।
ये समाज,
ये दुनिया ,
ये लोग,
ये रीति-रिवाज़,
उसे अलग बनाते हैं हम सबसे,
हमारे बीच होने के बावजूद भी !
उसकी खनकती पायल को किसी की पहचान बताया है,
उसकी बिन्दीया का कारण खुद बना,
लाखों को बताया जाता है।
उसने कपड़े पहने तो,
बेशक लिहाज़ एक मर्द द्वारा बताया जाता है।
उनकी महफिलों को गलत बताया जाता है,
उनसे बिना पुछे उन्हे छूआ जाता है,
उसके बिना कहे उसे सिखाया जाता है,
तुम्हें प्यार है उससे तो प्यार दिखाओ,
यूं खाली अपनापन ना जताऔ
यूं उसका मजाक ना बनाओ,
वो तुम्हारे साथ एक विश्वास से है,
उसकी काली आंखों में लगा वो फीका-सा काजल ना बहाओ।
हम भी सफर करते हैं रातों में,
डर नही लगता,
उन्हें क्यूं डरना पड़ता है,
उन्हें ही क्यूं बदलना पड़ता है,
कभी निकलना तुम अंधेरे में,डर लगेगा।
खुद के लिये लड़ती हैं,
अपनो के लिये पड़ती हैं,
वो,जिन्हें वो जानती भी नही,
उस खौखले समाज का ध्यान करना पड़ता है
उन्हें ही क्यूं सब कुछ करना पड़ता है,
वो बहन है तेरी,
या दोस्त है,
होगी रिश्तेदार की बेटी
हाँ उसे भी डरना पड़ता है।
वो अकेली निकलती है,
अपने आप के लिये!
कभी हार नही मानती,
हर बार लड़ती हैं,
सब के लिये।
हर दिन थोड़ी सी मरती है।
उसे सब के बारे में पता है,
फिर भी अनजान बनती है,
एक मौका देती है,
तेरे लिये सब कुछ करती है,
माँ,बहन,बेटी,बीवी,दोस्त,
फिर भी तू उसको नही समझता,
ओ इन्सान तू इन्सान को नही समझता।
देख वोही इश्क़ की अचूक राधा है
वो ही शिव को झुकाने वाली काली,
उसे मजबुर ना कर,
पेन गिरा के लड़ने के लिये,
वो ही रानी बाई ,
वो ही ज्योतिबा है,
ओ आदमी समझ ले उसे,
वो तेरी कलम,
वो तेरा कागज़,
वो तेरे नवरात्रे ,
वो तेरी नमाज,
तेरे संगीत में वो,
तेरे शब्दों में है,
फिर भी क्यूं कदमों में है,
वो तुझे समझती है
बेशक वो 'लड़की' है।
मैने 'इश्क़' किया,उसने 'इश्क़' किया,
उसने उससे किया,मैने उससे किया,
तेरी गुजारिशोँ से वो ना कभी थक्ती है,
अन्ततः बेशक़ वो 'लड़की' है।
हम भी सफर करते हैं रातों में,
ReplyDeleteडर नही लगता,
उन्हें क्यूं डरना पड़ता है,
उन्हें ही क्यूं बदलना पड़ता है,
Best line of this poem bro
😍😍
DeleteAwesome bro🤟🤟🤟outstanding😊😊
Deleteawesome 😎😎👍👏👏
Deletethanks...
ReplyDeleteOsham vikash,, Best of Luck
ReplyDeleteBehtareen bhai dil jeet lia 😍😍👌👌👌👌👌
ReplyDeleteVery nice 👍👌
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